फ्री कंप्यूटर इंस्टीट्यूट फ्रैंचाइज़ कैसे लें? – SPA Technical Training Center Pvt. Ltd
By JBCE / January 24, 2025
Email: info@spapl.in | Call: 9721289898, 7023723258, 7525947500
कंप्यूटर एक ऐसा यंत्र (Device) है जो सूचनाओं को एकत्रित कर उन्हें आवश्यकता पड़ने पर सुनियोजित ढंग से प्रस्तुत करता है कंप्यूटर जटिल से जटिल गणनाओं को बहुत तेजी से तथा बिना किसी त्रुटि (Error) के संपन्न कर देता है। आजकल विश्व के हर क्षेत्र में कंप्यूटर का प्रयोग हो रहा है। आज अंतरिक्ष, फिल्म निर्माण, यातायात, उद्योग व्यापार तथा शोध का कोई भी क्षेत्र कम्प्यूटर से अछूता नहीं है। कम्प्यूटर द्वारा जहां एक तरह वायुयान, रेलवे तथा होटलों में सीटों का आरक्षण होता है वहीं दूसरी तरफ बैंकों में कम्प्यूटर की वजह से कामकाज शुद्धता तथा तेजी से हो रहा है। घरों के लिए ऐसे कम्प्यूटर मौजूद हैं जो घर का दरवाज़ा घर के सदस्य की आवाज़ सुनकर खोल देते हैं।
कम्प्यूटर के द्वारा हम ई-बिज़नेस भी कर सकते हैं। जिसे हम “ई-कॉमर्स” भी कहते हैं। कम्प्यूटर की सहायता से क्रेडिट कार्डों द्वारा ख़रीददारी भी की जा सकती है।
विश्व भर में कंप्यूटरों के परस्पर संयोजन से बना एक संचार जाल (Communicaton Network) है जिसे हम इंटरनेट कहते हैं। इंटरनेट द्वारा हम कभी भी, कहीं से भी संदेश एक शहर से दूसरे शहर में ईमेल के जरिए भेज सकते हैं
विषय – सूची
Desktop Computer
कंप्यूटर शब्द की उत्पत्ति अंग्रेजी भाषा के शब्द “कंप्यूट” (Compute) से हुई है, इस शब्द का अर्थ है गिनती अथवा गणना करना।
परिभाषिक शब्दों में, कंप्यूटर एक इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस है जो प्रोग्राम ( निर्देशों का समूह) के नियंत्रण में डाटा को प्रोसेस करके सूचना (Information) उत्पन्न करता है। डेटा किसी भी प्रकार का हो सकता है जैसे-किसी व्यक्ति का बायोडाटा, किसी विद्यार्थी के अंक, विभिन्न यात्रियों की डिटेल (नाम, उम्र लिंग,) आदि।
कंप्यूटर में डाटा को स्वीकार करके प्रोग्राम को क्रियान्वित (Execute) करने की क्षमता होती है। कंप्यूटर में डाटा को स्वीकार करने के लिए इनपुट डिवाइस (Input Device) तथा प्रोसेसिंग के पश्चात प्राप्त परिणाम को प्रस्तुत करने के लिए आउटपुट डिवाइस(Output Device) होती है।
- विज्ञापन -
आजकल कंप्यूटर का उपयोग हर क्षेत्र में हो रहा है क्योंकि कंप्यूटर ही एक ऐसी स्वचालित मशीन है जो कि बहुत सारे कार्य स्वतः कर लेती है इसके कुछ कारण निम्नलिखित हैं।
हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। तथा अच्छाई के साथ बुराई भी जुड़ी होती है और कंप्यूटर भी इसका अपवाद नहीं है। इसकी भी कुछ सीमाएँ हैं, जिनका पालन वह पूरी शुद्धता से नहीं कर पाता-
कंप्यूटर का इतिहास लगभग 3000 वर्ष पुराना है जब चीन में एक गणना यंत्र (Calculating Machine) “अबेकस” (Abacus) का आविष्कार हुआ। यह एक मैकेनिकल डिवाइस है जो आज भी चीन, जापान आदि देशों में अंकों की गणना के काम आता है।
A Chinese abacus
अबेकस एक तारों का फ्रेम होता है। इन तारों (Wires) में बीड ( पक्की मिट्टी के गोले जिनमें छेद होते हैं) पिरोई रहती है। इस फ्रेम के दो भाग होते हैं- छोटे भाग को Heaven तथा दूसरे बड़े भाग को Earth कहा जाता है। फ्रेम के एक तरह के प्रत्येक तार में दो बीड होती हैं जिनमें प्रत्येक का मान 5 होता है तथा दूसरे भाग के प्रत्येक तार में 5 बीड होती हैं जिनमें प्रत्येक का मान 1 होता है। प्रारम्भ में अबेकस को व्यापारी लोग गणनाएं करने के काम में प्रयोग किया करते थे। यह मशीन अंकों की जोड़, गुणा, तथा भाग क्रियाएं करने के काम आती है।
Blaise Pascal
17वी शताब्दी के दौरान ब्लेज पास्कल फ्रांस में गणितज्ञ व भौतिक-शास्त्री हुआ करते थे। उन्होंने mechanical Digital Calculator का विकास सन् 1642 ई. में किया। इस मशीन को ऐडिंग मशीन कहते थे। क्योंकि यह मशीन केवल जोड़ या घटा कर सकती थी। यह मशीन घड़ी और ओडोमीटर के सिद्धांतों पर कार्य करती थी। इस मशीन में 10 दांतो वाली रेचेट गियर का प्रयोग किया गया। पहले इकाई वाले रेचेट गियर का दस अंकों का एक चक्र पूरा हो जाने पर दहाई वाले रेचेट गियर का एक दांत आगे बढ़ता था। इस प्रकार दहाई वाले रेचेट गियर का दस दांतो का एक चक्र पूरा होने पर सैकेण्ड वाले रेचेट गियर का एक दांत आगे बढ़ता था। ये रेचेट गियर हाथ से घुमाये जाने वाले पहियों की सहायता से चलाये जाते थे। ब्लेज पास्कल की एडिंग मशीन (Adding Machine) को पास्कलाइन (Pascaline) कहते हैं, जो सबसे पहली Mechanical Calculating Machine थी।
इस डिवाइस की क्षमता लगभग 6 व्यक्तियों के बराबर थी आज भी कार व स्कूटर के speedometer में यही सिस्टम काम करता है।
Pascaline (Image Credit: liveauctioneers.com)
Charles Babbage (Image Credit: britannica.com)
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में गणित के प्रोफेसर चार्ल्स बैबेज ने एक Mechanical Calculating मशीन विकसित करने की आवश्यकता तब महसूस की जब गणना के लिये बनी हुई सारिणियों में त्रुटि (Error) आने लगी। ये सारिणियां मानव द्वारा ही बनायी गयी थीं इसलिए इनमें त्रुटि आ सकती थी।
चार्ल्स बैबेज ने सन् 1822 में एक मशीन का निर्माण किया जिसका नाम उन्होंने “डिफरेंस इंजिन” रखा। इस इंजिन की सहायता से Algebric Expression एवं साख्यिकीय तालिकाओं की गणना 20 अंकों तक शुद्धता से की जा सकती थी।
The Difference Engine (Image Credit: britannica.com)
चार्ल्स बैबेज ने डिफरेंस इंजिन की सफलता से प्रेरित होकर चार्ल्स बैबेज ने एक ऐसे कैल्कुलेटिंग डिवाइस (Calulating Device) की परिकल्पना की, जिसमें उसकी एक कृत्रिम स्मृति (Artificial Memory) हो एवं दिये गये प्रोग्राम के अनुसार कैल्कुलेशन करे। इस डिवाइस को उन्होंने बैबेज एनालिटिकल इंजिन नाम दिया।
Analytical Engine (image Credit: britannica.com)
यह मशीन कई प्रकार के गणना संबंधी कार्य ((Computing Work) करने में सक्षम थी। यह पंचकार्डों पर संग्रहीत (Stored) निर्देशों के समूह द्वारा निर्देशित होकर कार्य करती थी। इसमें निर्देशों (instructions) को संग्रहीत करने की क्षमता थी। और इसके द्वारा स्वाचलित रूप से परिणाम भी छापे जा सकते थे।बैबेज का यह एनालिटिकल इंजिन आधुनिक कम्प्यूटर का आधार बना यही कारण है की चार्ल्स बैबेज को कंप्यूटर का जनक कहा जाता है।
बैबेज का एनालिटिकल इंजिन शुरू में बेकार समझा गया था तथा उसकी उपेक्षा की गई जिसके कारण बैबेज को बड़ी निराशा हुई। परंतु एडा ऑगस्टा(Ada Augusta), जो प्रसिद्ध कवि लॉर्ड वायरन की पुत्री थी. उन्होंने बैबेज के उस एनालिटिकल इंजिन में गणना के निर्देशों को विकसित करने में मदद की। चार्ल्स को जिस प्रकार कंप्यूटर विज्ञान का जनक होने का गौरव प्राप्त है उसी प्रकार विश्व में एडा ऑगस्टा को “पहले प्रोग्रामर” होने का श्रेय जाता है। एडा ऑगस्टा को सम्मानित करने के उद्देश्य से एक प्रोग्रामिंग भाषा का नाम “एडा” (ada) रखा गया।
- विज्ञापन -
Herman Hollerith
चार्ल्स बैबेज के एनालिटिकल इंजिन कि परिकल्पना के लगभग 50 वर्ष बाद अमेरिका के वैज्ञानिक हर्मन होलेरिथ (Herman Hollerith) ने इस परिकल्पना को साकार किया। हर्मन होलेरिथ अमेरिकन जनसंख्या ब्यूरो में काम करते थे। उन्होंने इलैक्ट्रिकल टेबुलेटिंग मशीन(Electrical Tabulating Machine) बनाई। इस मशीन में पंचकार्डों की सहायता से आँकड़ों को संग्रहीत किया जाता था। इन पंचकार्डों को एक-एक करके मशीन पर रखा जाता था। टेबुलेटिंग मशीन पर लगी सुइयां इन कार्ड्स से आँकड़ों को पढ़ने का कार्य करती थी। जब सुइयां कार्ड पर बने छिद्रों से आर-पार हो जाती थी तो वे कार्ड के नीचे रखे पारे को छू जाती थी, जिसके कारण इलैक्ट्रिकल सर्किट पूरा हो जाता था।
Electrical Tabulating Machine
इस मशीन की सहायता से जनगणना का जो कार्य 7 वर्षों में पूरा हो पाता था, अब वह मात्र 3 वर्षों में पूरा होने लगा। सन् 1886 में होलेरिथ ने इन मशीनों के व्यापार के लिए “टेबुलेटिंग मशीन कंपनी” नामक एक कंपनी बनायी। सन् 1911 तक इस कंपनी में कई और कंपनियाँ जुड़ गयीं। इन सभी कंपनियों के समूह को एक नाम दिया गया “कंप्यूटर टेबुलेटिंग रिकॉर्ड कंपनी”। सन् 1924 में इस कंपनी को नया नाम “IBM Corporation” (International Business Machine Corporation) रखा गया। सन् 1930 के समाप्त होने तक I.B.M. का विश्व के पंचकार्ड उपकरणों के बाजार के 80 प्रतिशत भाग पर कब्जा हो चुका था। I.B.M. के कारण उस समय तक के प्रचलित अधिकांश उपकरण Electro-Mechanical Equipments में परिवर्तित कर दिये गये।
सन् 1940 में ElectroMechanical Computing शिखर तक पहुँच चुकी थी। आई.बी.एम के चार शीर्ष इंजीनियरों व डॉ. हावर्ड आईकेन सन् 1944 मे एक मशीन को विकसित किया और इसका आधिकारिक नाम ऑटोमेटिक सिक्वेन्स कंट्रोल्ड कैल्कुलेटर (Automatic Sequence Controlled Calculator) रखा। बाद में इस मशीन का नाम बदलकर मार्क-1 रखा गया। यह विश्व का पहला Electro Mechanical Computer था। इस कंप्यूटर की सहायता से सभी तरह की अंक-गणितीय गणनाएं की जा सकती थी, साथ ही Logarithm एवं trigonometry की गणनाएं करना भी संभव था।
आईकेन और IBM के मार्क-1 की तकनीक, नई इलैक्ट्रॉनिक्स तकनीक के आने से पुरानी हो गयी थी। नयी इलैक्ट्रॉनिक तकनीक मशीनों में विद्युत की उपस्थिति व अनुपस्थिति का सिद्धांत था। इसमें कोई भी चलायमान (movalbe) पुर्जा नहीं था इसलिए यह विद्युत यांत्रिक (Electro Mechanical) मशीन से तेज गति से चलता था
सन् 1945 में एटानासोफ (Atanasoff) ने एक इलैक्ट्रॉनिक मशीन को विकसित किया, जिसका नाम ए.बी.सी (A.B.C) रखा गया। ABC, Atanasoff Berry Computer का संक्षिप्त रूप है। ABC सबसे पहला इलैक्ट्रॉनिक कंप्यूटर था।
कंप्यूटर के विकास क्रम को समझने के लिए पाँच पीढ़ियों में बाँटा गया है। इससे कंप्यूटरों की तकनीक में हुई प्रगति की जानकारी समझने में मदद होती है। कंप्यूटर के सिद्धांत या उसके किसी भाग के नवीन रूप में विकसित होने पर एक नयी पीढ़ी की शुरुआत होती है।
कंप्यूटर की पीढ़ियाँ निम्न प्रकार हैं –
क्रम. | पीढ़ी (Generation) | काल (Period) | तकनीक (Technology used) |
1 | प्रथम पीढ़ी (1st Gen.) | 1946-1956 | वैक्यूम ट्यूब |
2 | द्वितीय पीढ़ी (2nd Gen.) | 1956-1964 | ट्रांजिस्टर |
3 | तृतीय पीढ़ी (3rd Gen.) | 1964-1970 | IC (integrated Circuit) |
4 | चतुर्थ पीढ़ी (4th Gen.) | 1970-1985 | VLSI |
5 | पंचम पीढ़ी (5th Gen.) | 1985 – अब तक | ULSIC With AI |
एनिएक (ENIAC) – वैक्यूम ट्यूब के आविष्कार के साथ ही प्रथम संपूर्ण इलैक्ट्रॉनिक कंप्यूटर बनाया गया , इसका नाम ENIAC (Electronic Numerical Integrator and Computer) रखा गया।
वॉन न्यूमान और संग्रहीत की विचारधारा
एनिएक कंप्यूटर के ऑपरेटर्स की मुख्य समस्या यह थी की प्रत्येक नयी कैलकुलेशन के लिए उन्हें कंप्यूटर में तारों के नए संयोजन करने पड़ते थे, जिसमें काफी समय व्यर्थ होता था। इसके समाधान के लिए 1945 में JOHN VON NEUMANN ने Eckert, Mauchly, Goldstein तथा Burks के साथ मिलकर एक कंप्यूटर तैयार किया जिसमें Data के साथ-साथ निर्देशों को भी संचित किया जा सकता था। इसे Stored Program Concept के नाम से जाना जाता है। इसके बाद के सभी कंप्यूटर इसी Concept पर आधारित होते हैं।
50 के दशक के वर्षों में निर्मित UNIVAC-I (Universal automatic Computer) पहला कंप्यूटर था जिसे बाजार में विक्रय के लिए उतारा गया था।
- विज्ञापन -
द्वितीय पीढ़ी के कंप्यूटर में वैक्यूम ट्यूब की जगह ट्रांजिस्टर का प्रयोग किया जाने लगा था। इस नयी तकनीक से कंप्यूटर में एक नये युग की शुरुआत हुई। ट्रांजिस्टर का आविष्कार 1947 में William Shockley द्वारा किया गया था। वैक्यूम ट्यूब की अपेक्षा ट्रांजिस्टर आकार में छोटा होता था तथा लगातार विद्युत के संवहन से कम गर्म होता था।
सन् 1964 से सन् 1970 तक के कंप्यूटर्स को तृतीय पीढ़ी के कंप्यूटर्स की श्रेणी में रखा गया है। इस पीढ़ी के कंप्यूटर्स में ट्रांजिस्टर के स्थान पर Integrated Circuits का प्रयोग किया गया था। एक I.C. (Integrated Circuits) में ट्रांजिस्टर, रेजिस्टर और कैपेसिटर तीनों को ही समाहित किया गया था।
सन् 1938 में Texas Instrument Company के जे.एस. किल्वी ने सिलिकॉन के छोट से चिप पर एक IC बनाया।
सन् 1953 में हार्विच जॉनसन ने इस तकनीक को MOSFET (Metal Oxide Semi-Conductor or Field Effect Transistor) के नाम से पेटेन्ट करा लिया। सन् 1966 में एक ही चिप पर हजारों ट्राजिस्टर को बना पाना संभव हो गया था। जिस कारण कंप्यूटर्स का आकार पहले की पीढ़ियों की तुलना में बहुत छोटा हो गया था। इस पीढ़ी के कंप्यूटर्स में Vdieo Dishplay Unit का भी प्रयोग किया गया था।
सन् 1970 से लेकर 1985 तक के कंप्यूटर्स को चतुर्थ पीढ़ी में रखा गया LSI (Large Scale Integration) और फिर सन् 1975 में VLSI ( Very Large Scale Integration) चिप निर्माण से पूरी Controle Processing Unit का एक ही चिप पर आ पाना संभव हो गया। यह चिप अंगुली के नाखून के आकार की होती है।सन् 1970 में तैयार किये गये इस चिप का नाम Intel 4004 था और इस छोटे से चिप को माइक्रोप्रोसेसर कहा गया तथा जिन कंप्यूटर्स में माइक्रोप्रोसेसर का प्रयोग किया गया उन्हें माइक्रो-कंप्यूटर कहा गया।
Intel 8080 पर आधारित पहला माइक्रो कंप्यूटर “आल्टेयर” MITS नामक कंपनी ने बनाया। इस कंप्यूटर की मेमोरी 1KB थी MITS कंपनी ने बिल गेट्स को आल्टेयर में BASIC भाषा इन्सटॉल करने के लिए कहा। बिल गेट्स का यह प्रयास सफल रहा तथा इसी के बाद बिल गेट्स ने माइक्रोसॉफ्ट कंपनी की स्थापना की जो आज दुनिया की सबसे बड़ी सॉफ़्टवेयर कंपनी है।
सन् 1985 से अब तक के कंप्यूटर्स को पांचवी पीढ़ी में रखा गया है। इन कंप्यूटर्स में अद्भुत चीजों का समाहित करने का प्रयास किया जा रहा है। इस पीढ़ी के कंप्यूटर्स में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के विकास पर जोर दिया जा रहा है। इस पीढ़ी के कंप्यूटर्स अभी भी विकास-शील स्थिति में हैं इन पर अभी काफी विकास कार्य होना बाकी है।